Monday, December 7, 2009

इक़बाल : ए हकीक़ते-मुतज़र

कभी, ए हकीक़ते-मुतज़र, नज़र आ लिबासे-मजाज़ में
कि हज़ारों सिज्दे तड़प रहे हैं मेरी जबीने-नियाज़ में

जो मैं सर-ब-सिज़दा हुआ कभी, तो ज़मी से आने लगी सदा,
तेरा दिल तो है सनम-आशना, तुझे क्या मिलेगा नमाज़ में

ना वो इश्क़ में रहीं गर्मियां, न वो हुस्न में रहीं शोखियाँ,
ना वो गज़नवी में तड़प रही, ना वो ख़म है ज़ुल्फे- अयाज़ में

ना कहीं जहाँ में अमाँ मिली, जो अमाँ मिली तो कहाँ मिली,
मेरे जुर्मे-खाना ख़राब को, तेरे अफ़्वे-बंदानवाज़ में

तू बचा-बचा के न रख इसे, तेरा आइना है वो आइना
कि शिकस्ता हो तो अज़ीज्तर है निगाहे-आइनासाज़ में

Friday, October 9, 2009

ग़ालिब: दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है!

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है!
आखिर इस दर्द की दवा क्या है!

हम हैं मुश्ताक और वो बेज़ार,
या इलाही ये माज़रा क्या है!

सब्ज़ा-ओ-गुल कहाँ से आये हैं,
अब्र क्या है, हवा क्या है!!! दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है!

जान तुम पे निसार करता हूँ,
मैं नहीं जानता वफ़ा क्या है?

जब की तुझ बिन नहीं कोई मौजूद,
फिर ये हंगामा, ए खुदा क्या है!!!

मैंने माना की कुछ नहीं ग़ालिब
मुफ़्त हाथ आये तो बुरा क्या है!!!! दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है!

ज़रा सी बात पे वो जग हंसाइयाँ दे कर

ज़रा सी बात पे वो जग हंसाइयाँ दे कर,
चला गया मुझे वो कितनी जुदाइयाँ दे कर,

चलो हर्फ़-ए-तमन्ना उसी के नाम करे,
के जिस ने क़ैद किया है रिहाइयाँ दे कर,

मगर वहाँ तो वही ख़मोशी का पहरा था,
मैं आ गया तेरे दर से, दुहाईयाँ दे कर,

अजीब शख्स के वो मुझ से बद-गुमाँ ही रहा,
के जिसको पाया था मैंने खुदाइयाँ दे कर,

हूँ कितना सादा समझता था बच रहूँगा सफी,
ख्याल-ए-यार को शोला नवाइयां दे कर

ज़रा सी बात पे वो जग हंसाइयाँ दे कर,
चला गया मुझे वो कितनी जुदाइयाँ दे कर,

Ghazal by Naseer Turabi

तरके ताल्लुकात पे रोया ना तू , ना मैं,
लेकिन ये क्या की, चैन से सोया ना तू , ना मैं,

जब तक बिका ना था, तो कोई पूछता ना था,
तूने मुझे खरीद के अनमोल कर दिया,

वो हमसफ़र था, मगर उस से हम-नवाई ना थी,
की धूप छाँव का आलम रहा, जुदाई ना थी,

सुना है, गैर की महफ़िल में तुम ना जाओगे,
कहो तो आज सजा लूं गरीब खाने को,

कागा सब तन खाइयो, मोरा चुन चुन खाइयो माँस,
दो नैना मत खाइयो, इन्हें पिया मिलन की आस,

बिछड़ते वक़्त उन् आँखों में थी, हमारी ग़ज़ल,
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई ना थी,

तेरी सूरत से नहीं मिलती किसी की सूरत,
हम जहाँ में तेरी तस्वीर लिए फिरते हैं,

अजीब होती है राहे सुखन भी देख नसीर,
वहाँ भी आ गए जहाँ रसाई ना थी,

आ गया यूँ मेरे होठों पे

आ गया यूँ मेरे होठों पे, तेरा नाम की बस,
वो चरागाँ किया आँखों ने सरे शाम की बस,

याद क्या जानिए वो कौनसी बात आई है,
दिल ने फिर आज उठाया है वो कोहराम की बस,

एक दमकता हुआ तारा सरे मिजेगाहाँ आया,
उसने आँखों से दिया था कोई पैगाम की बस,

हम भी सुनते हैं की नाज़ाँ है बहुत हुस्न पे चाँद,
एक नज़र देख तो ले तुझको लगे बाम के बस,

सांस लेना भी सफी बाइशे-आज़ार हुआ,
वो लगे दिल पे, तेरे हिज्र में, इल्जाम की बस,

Saturday, October 3, 2009

मुर्शद

अलफ़ अल्लाह चम्बे दी बूटी, मन मुर्शद मेरे लाइ हू
नफ़ी अस्बाद दा मिल्या पानी, हर बूटी हर जाई

अन्दर बूटी मुशक रचाया, जान फ़ुलन ते आई,
जीव्वे मेरा कामल बाहू, जीव्वे बूटी लाइ

ईहे तन मेरा चश्मा होया, मैं मुर्शद वेखें रज्जाँ हू
लू लू विच लख लख चश्मा, इक खोलां इक कज्जाँ हू

इतना दिट्ठ्या, मैनूं सबर ना आवे, मैं होर किस वळ भज्जाँ हू

Tuesday, September 29, 2009

जबसे तुने मुझे दीवाना बना रखा है

नदी किनारे धुँवा उट्ठे, मैं जानु कुछ होए,
जिस कारन मैं जोगन बनी, कहीं वो ही जलता ना होए|

आप गैरों की बात करते हो, हमने अपने भी आज़माएँ हैं,
लोग काँटों से बच के चलते हैं, हमने फूलों से जख्म खाएं हैं|

तुलसी ऐसी प्रीत ना कर, जैसे पेड़ खजूर,
धूप लगे तो छाँव नहीं, भूख लगे फल दूर,

जबसे तुने मुझे दीवाना बना रखा है,
संग हर शख्स ने हाथों में उट्ठा रखा है|

उसके दिल पे भी कड़ी इश्क में गुज़री होगी,
नाम जिसने भी मोहब्बत का सज़ा रखा है|

काजल डालू किरकिरा सुरमा सहा ना जाए,
जिन नैनन में पी बसे , दूजा कहाँ समाये|

पत्थरों आज मेरे सर पे बरसते क्योँ हो,
मैंने तुमको भी कभी, अपना खुदा रखा है|

दुनिया बड़ी बावरी पत्थर पूजने जाए,
घर की चक्की कोई ना पूजे, जिसका पीसा खाए|

पी जा अय्याम की तलकी को भी हंस कर नासिर,
ग़म को सहने में भी कुदरत मज़ा रखा है|

"Cacoethes" : painting by rawat

Monday, September 21, 2009

मज़ा आ गया....

मेरे रश्क-ए-कँवर, तूने पहली नज़र जब नज़र से मिलायी, मज़ा आ गया,
बर्क सी गिर गयी, काम ही कर गयी, आग ऐसी लगायी, मज़ा आ गया|

जाम में घोल कर हुस्न की मस्तियाँ, चाँदनी मुस्कुरायी मज़ा आ गया,
चाँद के साए में, ए मेरे साथिया तूने ऐसी पिलाई, मज़ा आ गया|

नशा शीशे में अँगडाई लेने लगा, बज़्म-ए-रिन्दाँ में सागर खनकने लगे,
मैक़दे पे बरसने लगी मस्तियाँ, जब घटा गिर के छाई मज़ा आ गया,

बे-हिज़ाबानां वो सामने आ गए, और जवानी, जवानी से टकरा गयी,
आँख उनकी लड़ी यूँ मेरी आँख से, देख कर ये लड़ाई मज़ा आ गया|

आँख में थी हया, हर मुलाक़ात पर, सुर्ख-आरिज़ हुए वसल की बात पर|
उसने शरमा के मेरे सलावत पे, ऐसे गर्दन झुकाई मज़ा आ गया|

शेख साहिब का ईमान बिक ही गया, देख कर हुस्न-ए-साकी पिघल ही गया,
आज से पहले ये कितने मगरूर थे, लूट गयी पारशाई मज़ा आ गया,

ए फ़ना शुक्र है, आज बाद-ए-फ़ना, उसने रख ली मेरे प्यार की आबरू,
अपने हाथों से उसने मेरी कब्र पर चादर-ए-गुल चढ़ाई मज़ा आ गया|

Thursday, September 17, 2009

इस करम का करुँ शुक्र कैसे अदा ?

बे बंदगी उरूज़ किया, बन्दा कर दिया, तारा मेरे नसीब का ताबिंदा कर दिया,
इतनी बड़ी हुज़ूर की बन्दा-नवाजियाँ, मुझको मेरे सवाल ने शर्मिंदा कर दिया!

इस करम का करुँ शुक्र कैसे अदा ?, जो करम मुझ पे, मेरे नबी कर दिया!
मैं सजाता था सरकार की महफिलें, मुझको हर ग़म से रब ने बरी कर दिया|

ग़म-ए-आशिकी से पहले, मुझे कौन जानता था!
मुहबत-ए-मुस्तफ़ा से पहले, मैं कुछ नहीं था, मैं कुछ नहीं था,
करम की इस इन्तहा से पहले, मैं कुछ नहीं था, मैं कुछ नहीं था,
तेरे करम का तस्सदुक, तेरी अदा पे निसार,
मैं क्या था और मुझे क्या बना दिया तूने,
तेरी ज़ात ने बना दी मेरी जिन्दगी फ़साना|
इस करम का करुँ शुक्र कैसे अदा ? जो करम मुझ पे, मेरे नबी कर दिया!
मैं सजाता था सरकार की महफिलें, मुझको हर ग़म से रब ने बरी कर दिया|

अता किया मुझको दर्द-ए-उल्फ़त, कहाँ थी ये पुर खता की किस्मत,
मैं इस करम के कहाँ था काबिल, हुजुर की बन्दा परवरी है,
बन गयी बात, उनका करम हो गया, शाख-ए-नख्ले-तमन्ना हरी हो गयी,
मेरे लब पे मोहम्मद का नाम आ गया, बैठे बैठे मेरी हाज़िरी हो गयी,
खालिक ने मुझको मेरी तलब से सिवा दिया, सल्माया दाया इश्क-ए-मोहम्मद बना दिया,
इस करम का करुँ शुक्र कैसे अदा ?जो करम मुझ पे, मेरे नबी कर दिया!
मैं सजाता था सरकार की महफिलें, मुझको हर ग़म से रब ने बरी कर दिया|

ज़िक्र-ए-सरकार की है बड़ी बरकतें, जब लिया नाम-ए-नबी मैंने दुआ से पहले,
हो गयी मुझ पे अता मेरी खता से पहले, मोहम्मद मुस्तफ़ा का नाम भी क्या इसमें आज़म है,
जहाँ कोई ना काम आये वहां ये काम आता है,
मिल गयी राहतें, अज्मतें, उफरतें,
मैं गुनाहगार था, बेअमल था मगर, मुस्तफ़ा ने मुझे जन्नती कर दिया,
इस करम का करुँ शुक्र कैसे अदा ?जो करम मुझ पे, मेरे नबी कर दिया!
मैं सजाता था सरकार की महफिलें, मुझको हर ग़म से रब ने बरी कर दिया|

Saturday, August 29, 2009

P. A. M. Dirac

I love everything what Dirac sir said, & here is the text said by Dirac sir regarding the relativeness and absoluteness of the size (small or big).

"It is usually assumed that, by being careful, we may cut down the disturbance accompanying our observation to any desire extent. The concepts of big and small are then purely relative and refer to the gentleness of our means of observation as well as to the object being described. In order to give an absolute meaning to size, such as is required for any theory of the ultimate structure of the matter, we have to assume that there is a limit to the fineness of our powers of observation and the smallness of the accompanying disturbance-a limit which is inherent in the nature of the things and can never be surpassed by improved technique or increased skill on the part of the observer."

Wednesday, August 12, 2009

धुंआ बना के, फ़िज़ा में उड़ा दिया मुझको

धुंआ बना के, फ़िज़ा में उड़ा दिया मुझको,
मैं जल रहा था, "किसी" ने बुझा दिया मुझको|

खड़ा हूँ आज भी रोटी के चार हर्फ़ लिए,
सवाल ये है, किताबों ने क्या दिया मुझको|

सफ़ेद संग की चादर लपेट कर मुझ पर,
फसील-ए-सहर पे किसने सजा दिया मुझको|

मैं एक ज़र्रा बुलंदी को छूने निकला था,
"हवा" ने थम के ज़मीं पे गिरा दिया मुझको|

Friday, August 7, 2009

दर्द से मेरा दामन भर दे

दर्द से मेरा दामन भर दे, या अल्लाह!
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह!

मैंने तुझसे चाँद सितारे कब मांगे,
रोशन दिल, बे-दाग नज़र दे, या अल्लाह!
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह!

सूरज सी इक चीज़ तो हम सब देख चुके,
सचमुच की अब कोई सहर दे या अल्लाह!
फिर चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह!

या धरती के ज़ख्मों पर मरहम रख दे,
या मेरा दिल पत्थर कर दे या अल्लाह!
या चाहे दीवाना कर दे या अल्लाह!

मेरी तस्वीर में रंग

मेरी तस्वीर में रंग और किसी का तो नहीं,
घेर ले मुझे सब आँखें, मैं तमाशा तो नहीं|

जिन्दगी तुझसे हर इक सांस पे समझौता करुँ,
शौक जीने का है मुझको, मगर इतना तो नहीं|

रूह को दर्द मिला, दर्द को आँखें ना मिली,
तुझको महसूस किया है, तुझे देखा तो नहीं|

सोचते सोचते दिल डूबने लगता है मेरा,
ज़हन की तह में मुज्ज़फ्फर कोई दरिया तो नहीं?

Sunday, June 14, 2009

डाची(दाची) वालेया मोड़ मुहार वे

डाची(दाची) वालेया मोड़ मुहार वे

तेरी डाची(दाची) दे गल विच टलिंयाँ (तालियाँ)
वे मैं पीर मनावण चलियाँ
सानू ले चल अपणे नाल वे

तेरी डाची(दाची) दे गल विच ढोलणाँ
कूड़े सजना दे नाल नय्यों बोलणा
दिल कड्ड के ले गयो नाल वे

तेरी डाची(दाची) दे गल विच हँसियाँ
मोहे छोड़ के लँग गयी कस्सियाँ
साड्डा हाल कीतो बेहाल वे

Saturday, June 13, 2009

मेंडा इश्क वीं तू मेंडा यार वीं तू

काले मेंडे कपड़े, ते काला मेंडा भेष,
गुनाही भरिया मैं फिरां लोग कहे दरवेश

उट्ठ फ़रीदा सुतेया, दुनिया देखण जाय
जे कोई मिलया जाय बक्शिया, तो तू भी बक्शिया जाय

मेंडा इश्क वीं तू मेंडा यार वीं तू
मेंडा दीन वीं तू ईमान वीं तू
मेंडा जिस्म वीं तू, मेंडा रूह वीं तू
मेंडा अल्ग वीं तू, जींद-जाँ वीं तू
कुरान वीं तू, मेंडा क़ाबा किबला, मस्जिद मंदिर,
मेंडे फ़र्ज़ फरिज़े हज्ज ज़काता, सौं-ओ-सलात अजान वीं तू...

Daai Halima: when Mohammad comes

हूर-ओ-मलिक झूम उठे, हक ने जारी फरमान किया
रेगिस्तान-ए-अरब को जिस ने रश्क-ए-बहरिस्तान किया
जश्न मनाओ! कुदरत ने हर मुश्किल को आसान किया
अर्श ने यह खुश-खबरी भेजी, ज़मीन ने यह ऐलान किया

अब्दुल्लाह के घर से जहां में नूर बिखरने वाला है
दाई हलीमा गो़द में तेरी चाँद उतरने वाला है

खुश हुए जिन्–ओ–बशर, सुन के ये नेक खबर
मेहरे ताजिम-ओ-अदब, झुक गए शम्स-ओ-कमर
बाम अरमान के सजे, रूह के साज़ बजे
चाँद ने हँसकर कहा, मेहरे ताजीम झुका
सुन ले मौला यह दोहा, कर दे राह उसकी पनाह
उसके कदमों में बिछा जिसपे तू खुद है फ़िदा

कहकशां बोल उठी, मौला अरमान है यही
उसकी में राह बनूँ, उसकी ठोकर में रहूँ
मेरे उपर वो चले, आये दिन मेरे भले
ज़िन्दगी फुले फले, उसकी न-लें त'ले

फूल को उसकी तलब, शाख को उसका अदब
सब तलबगार होय, उसके बीमार होय
अमन गो़द मेरी, अपने जलवों से भरी
ए हलीमा तू मचल, नाज़ कर तू झूम के चल
वो नबी प्यारा नबी, मुन्तजिर जिस के सभी
आने वाला है वोही, आने वाला है वोही


तो झूम री दुनिया, तेरा मुक़द्दर आज सँवरने वाला है
दाई हलीमा गोद में तेरी चाँद उतरने वाला है

आये गा वो महबूब ए खुदा वो हमदम दावर आएगा
दुनिया जिसपर नाज़ करेगी ऐसा पयम्बर आएगा

ए प्यासी मखलूक ना घबरा, तुझ तक सागर आएगा
लेके मय-कौसर का प्याला, सकी-ए-कौसर आएगा
काँधे पर कमली डाले अल्लाह का दिलबर आएगा
अल्लाह का दिलबर आएगा

बार रबी-उल-अव्वल का दिन, सुबह के ठंडे साए
और शोर हुआ आफाक में हर-सो लो वो मोहम्मद आये
आये रे आये मोरे भाग जगाये
जब होय पैदा मोहम्मद मुस्तफा गोद में ले कर हलीमा ने कहा
आये रे आये मोरे भाग जगाये

हर इक से हलीमा कहती थी इस बच्चे को अल्लाह रखे
जिस दिन से विलादत पाई है गिब्रैल बराबर आते हैं
आये रे आये मोरे भाग जगाये
तो आये गा शाह जो सब की झोली भरने वाला है
दाई हलीमा गोद में तेरी चाँद उतरने वाला है
दाई हलीमा गोद में तेरी चाँद उतरने वाला है

नीम शब्, चाँद, ख़ुद-फ़रामोशी - by Faiz

नीम शब्, चाँद, ख़ुद-फ़रामोशी
महफ़िलें - हस्तो - बूद वीराँ है
पैकरे - इल्तिजा है ख़मोशी
बज़्मे - अंजुम फ़सुर्दा - सामां है

आबशारे - सुकूत जारी है
चार सू बे-खु़दी सी तारी है
ज़िन्दगी जुज़्वे-ख़्वाब है गोया
सारी दुनिया सराब है गोया

सो रही है घने दरख्तों पर
चांदनी की थकी हुई आवाज़
कहकशाँ नीम-वा निगाहों से
कह रही है हदीसे-शौके-नियाज़

साजे-दिल के ख़मोश तारों से
छन रहा है खुमारे-कैफ़ आगीं
आरज़ू ख्वाब, तेरा रू-ए-हसीं

Sunday, May 31, 2009

हसरत-ए-दीद में गुजरां हैं:Lyrics by Faiz

हसरत-ए-दीद में गुजरां हैं, ज़माने कब से
दश्त-ए-उम्मीद में गर्दां हैं दीवाने कब से

देर से आँख पे उतरा नहीं अश्कों का अज़ाब
अपने ज़िम्मे है तेरा क़र्ज़ न जाने कब से

किस तरह पाक हो बेआरजू लम्हों का हिसाब
दर्द आया नहीं दरबार सजाने कब से

सुर करो साज़ की छेडें कोई दिलसोज़ ग़ज़ल
ढूंढता है दिले-शोरीदा बहाने कब से

पुर करो जाम के: शायद हो इसी लहज़ा रवां
रोक रक्खा है जो इक तीर क़ज़ा ने कब से

"फैज़" फिर कब किसी मक़तल में करेंगे आबाद
लब पे वीरां हैं शहीदों के फ़साने कब से

हसरत-ए-दीद

Here is one of the recent music compositions which I did. The lyrics is written by "Faiz". 
You can listen to this at following web-link

Sunday, May 10, 2009

Vacuum: as stated by Paul Dirac Sir

A perfect vacuum is a region where all the states of positive energy are unoccupied and all those of negative energy are occupied. & this was stated when Dirac sir was formalizing the relativistic quantum theory of the electron. (interested people can refer pg. 275 of  his book, titled "The Principle of Quantum Mechanics").

Sunday, May 3, 2009

कुछ अल्फाज़

मरहूम ख्यालात जब भी मचल उठते हैं,
माहताब-ओ-आफ़ताब का फ़ासला बढ़ाने को जी चाहता है| --रावत

कुछ तो सिला दे मेरी वफ़ा का,
जो तू ज़िन्दगी ना दे सका, मौत ही अदा कर| --रावत

ये क्या जगह है दोस्तों

ये क्या जगह है दोस्तों, ये कौनसा दयार है,
हद-ए-निगाह तक, जहाँ गुःबार ही गुःबार है|

ये किस मकांॅम पे हयात, मुझ को ले के आ गयी,
ना बस ख़ुशी पे है जहाँ, ना ग़म पे इख्तियार है|

तमाम उम्र का हिसाब माँगती है ज़िन्दगी,
ये मेरा दिल कहे तो क्या, की खुद से शर्म सार है|

बुला रहा है कौन मुझको, चिलमनों के उस तरफ,
मेरे लिए भी क्या कोई?, उदास, बेकरार है..............

बुला रहा है कौन मुझको, चिलमनों के उस तरफ,
मेरे लिए भी क्या कोई?, उदास, बेकरार है.......

Friday, April 24, 2009

a song very near to my heart written by Gulzar

तुझ से नाराज़ नहीं, जिन्दगी हैरान हूँ मैं,
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं|

जीने के लिए सोचा ही नहीं, दर्द सँभालने होंगे,
मुस्कुराये तो मुस्कुराने के, क़र्ज़ उतारने होंगे,
मुस्कुराऊ कभी तो लगता है, जैसे होठों पे क़र्ज़ रखा है|

आज अगर भर आई हैं, बूंदे बरस जायेंगी,
कल क्या पता, इनके लिए आँखें तरस जायेंगी,
जाने कब गुम हुआ, कहाँ खोया, एक आंसू छुपा के रखा था|

तुझ से नाराज़ नहीं, जिन्दगी हैरान हूँ मैं,
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं|

Saturday, April 4, 2009

Another approach for Quantum statistics

I am not really aware of the existance of this view.
I will try my best to put in words:
(i) As temperature does not appear directly into either of the quantum views formally put by Heisenberg, Schrodinger, Dirac, (Though the discovery of the Quanta by planck was driven by the Black Body Radiation), to obatin the mathematical forms of  the eigenfunctions, wavefunctions, and quantum indices.
(ii) What changes with the temeprature is the occupancy nature of the obtained quantum indices for fermions and bosons.
(iii) Now lets think of a quantum system with many body system (in the sense it really requires a traditional quantum analysis way using either Bose or Fermi statistics to descirbe it). And we want to describe the dynamical observables and consequently their functions and consequences. We do not opt for statistical way, rather we solve it numerically(atleast 4 computational cores required) by one of the formal ways mentioned in the (i) point, to obatin the total eigenfunctions and states of the system. Once we are done, we evaluate the different energy configurations (0-to Inf) and count, for the distinguishable states, the set of bodies' distribution for corresponding config. With this analysis a parameter  would be extracted, which we will call it later on The Temperature.  

कज़ा

तेरे क़दमों पे सर होगा, कज़ा (मौत) सर पे खड़ी होगी,
फिर उस सजदे का क्या कहना, अनोखी बंदगी होगी|

नसीमें सुबह गुलशन में, गुलों से खेलती होगी,
किसी की आखिरी हिचकी, किसी की दिल्लगी होगी|

दिखा दूंगा सरे महफिल, बता दूंगा सरे महशिल,
वो मेरे दिल में होंगे, और दुनिया देखती होगी|

मज़ा आ जायेगा महशिल में फिर सुनने सुनाने का,
ज़ुबां होगी वहां मेरी, कहानी आपकी होगी|

तुम्हे दानिस्ता महफिल में जो देखा हो तो मुजरिम,
नज़र आखिर नज़र है, बेइरादा उट्ठ गयी होगी|

Friday, April 3, 2009

T1

(1) the beauty of the mathematical formalism ("M") is so that sometimes when you are 
completely clueless  about the physical behaviour of the process, the "M" leads you on the way 
to unroll the mystery of the physical process, & then I admire calling it ("M")  as a natural 
science in itself, not just a tool. --rawat

(2) Matter-radiation Selection rules and Selection rules of Indian classical music shruti's. (An Analogy I will write in detail)

(4) Mind can sense much lower temperatures and much higher temperatures, which led us 
to think of thought experiments, which led humans to make experimental chambers to 
create those ambeinces to observe the q-effects associated with q-statistics, Human's surviving/living temperature range is not regarded by the nature to show its Q-beauty directly.
& Nature enjoys this sadistic pleausre. :) 

Wednesday, March 11, 2009

Conflict1

(i) I suppose that I understand the incompleteness both philosophically and meta-physical point of view.
(ii) Now how do we justify that the matter-radiation interaction understood by the humans is the right interpretation, for this mind's outcome, its the interaction of the nature given stimulus  of different periodicity, with matter(mind) (here I include everything the five elements of life defined by the religion or what is understood scienifcally as radiationor anything else yet unknown), which is the part of the whole system. Do not we require a meeting with the creator (i.e. surpassing the configurational states of this system), to understand it in a truthful manner. or the mind has even that power to emulate the whole scenario (there are two seats one occupied by me and the other by the creator), and the conversation starts......
(iii) What is it>>>>>>>if you exist "O my Lord" please take me out with you, and just make me feel what you are upto.......

हर एक बात पे कहते हो : मिर्ज़ा ग़ालिब

हर एक बात पे कहते हो तुम, की तू क्या है,
तुम्ही कहो की ये अंदाज-ए-गुफ्तगू क्या है|

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,
जब आँख ही से ना टपका तो फिर लहू क्या है|

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन,
हमारी जेब को अब हाज़त-ए-रफू क्या है|

जला है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है|

बाज़ी चा-ए-अत्फाल है : मिर्ज़ा ग़ालिब

बाज़ी चा-ए-अत्फाल है, दुनिया मेरे आगे,
होता है शब्-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे|

होता है निहा-गर्द में सहेरा मेरे होते,
घिसता है जभी ख़ाक पे दरिया मेरे आगे|

मत पूछ के क्या हाल है मेरा तेरे पीछे,
तू देख के क्या रंग है, तेरा मेरे आगे|

इमाँ मुझे रोके है, जो खींचे है मुझे कुफ्र,
तौबा मेरे पीछे है, कलीसा मेरे आगे|

दो हाथ को जुंबिश नहीं, आँखों में तो दम है,
रहेने दो अभी, सागरों मीना मेरे आगे|

Thursday, February 19, 2009

रब्बा मेरे हाल दा महरम तू

रब्बा मेरे हाल दा महरम तू,
अन्दर तू है, बाहिर तू है,
रोम रोम विच तू|
रब्बा मेरे हाल दा महरम तू,
तू है ताणा, तू है बाणा,
मैं नहीं, सब तू|
रब्बा मेरे हाल दा महरम तू,
कहे हुसैन फ़कीर साईं दा,
मेरा सब कुछ तू|
रब्बा मेरे हाल दा महरम तू,

escape

राजदारों से बच के चलता हूँ, 
ग़म गुस्सारों से बच के चलता हूँ,
मुझ को धोखा दिया सहारों ने,
अब सहारों से बच के चलता हूँ|

Wednesday, February 11, 2009

conflict of heart and experience

My heart says people are good inherently but experience says otherwise.

Monday, February 2, 2009

"The forsaken state"

When you support, feel and live an "idea" (includes being or nonbeing). You defend that "idea" in front of this whole world. Even you can die for that "idea".  But then..... one day when that idea itself lurches you down....,"you are really forsaken"........ 

"A forsaken soul"

Friday, January 30, 2009

तुम बस तुम

बंद आँखें, रुकी साँसे, धड़कनों में तुम,
तुम से दूर क्या रहूँ, ऐ हुज़ूर क्या करुँ?
नज़र आते हो, बस तुम ही तुम||

तुम बस तुम, तुम बस तुम, तुम बस तुम|
नज़र आते हो, बस तुम्ही तुम|

खुली जुल्फें, झुकी पलकें,और चाहतों में तुम,
तुमको भूल ना सकूँ, ऐ हुज़ूर क्या करुँ?
नज़र आते हो, बस तुम ही तुम||

तुम बस तुम, तुम बस तुम, तुम बस तुम|
नज़र आते हो, बस तुम्ही तुम|

एक सपना निगाहों में, ख्वाहीशों में तुम,
ख्वाहीशों में तुम, बस तुम ही तुम|

तुम बस तुम, तुम बस तुम, तुम बस तुम|
नज़र आते हो, बस तुम्ही तुम|

Sunday, January 25, 2009

ख़ुदा से इश्क

इश्क करने में तो वहदत का मज़ा मिलता है,
इश्क सच्चा हो तो बन्दे को ख़ुदा मिलता है|

इश्क करने का मज़ा हमने तो देख लिया,
जिस जगह सजदा किया तुझको वहीँ देख लिया|

इश्क में बू-ऐ-किब्रियाई की,
इश्क जिसने किया खुदाई की|

इश्क शाहों से ना छूटा, ना गदा से छूटा,
हमसे क्या छूटेगा, जब ये ख़ुदा से ना छूटा|

जिसको देखो वो, नज़र आता है दीवाना तेरा|
और वाह क्या अंदाज़ है, ए पीर-ऐ-मयखाना तेरा|

ये भी एक एजाज़ है, ए पीर-ऐ-मयखाना तेरा,
और बज्म में बेपाँव के, चलता है पैमाना तेरा|

दैर में ढूंढा, ना पाया, और ना काबे में मिला,
अरे ठोकरें खिलवा रहा, है कहाँ तू ए ख़ुदा|

दिल भी हाज़िर जां भी हाज़िर, सर भी हाज़िर है तेरे,
और इस से बढ़ कर तू बता दे, क्या है नज़राना तेरा|

तेरे हरजाई पने की हर जगह पे धूम है.
ए सनम, मेरे सनम, ए सनम,
मुश्किल से मुश्किल है पता पाना तेरा|

Saturday, January 24, 2009

हुसैन फ़कीर : रहिये वो नाल सजण दे रहिये वो

तू ही ताणा, तू ही बाणा,
कहे हुसैन फ़कीर ने माणा|
मैं नहीं, (सदर) सब तू|
रहिये वो नाल सजण दे रहिये वो,
लख लख वधियाँ दस्सा ताणे,
सब्बो सिर ते सहिये वो|
रहिये वो नाल सजण दे रहिये वो|
चंदन रुख लगा विच वेड़े,
ज़ोर तिहाडे खैय्ये वो|
रहिये वो नाल सजण दे रहिये वो|
तोड़े सिर बन्जे तड़ नालों,
ता विं हाल ना कहिये वो|
रहिये वो नाल सजण दे रहिये वो|
कहे हुसैन फ़कीर साईं दा,
जीव ते अमर रहिये वो|
रहिये वो नाल सजण दे रहिये वो|

Thursday, January 22, 2009

सब गन्दा है पर धंधा है यह from Movie Company

वोट में नोट, धोती पे है खोट, दिल पे चोट 
मतलब के यार, आगे से प्यार, पीछे से वार
 
सब गन्दा है पर धंधा है यह|

चंदन सा बदन, चंचल चितवन, यारों से जलन, 

हड्डी पसली एक, सीधा साधा पेट, दोनों घुटने टेक 
बातों की धार, हाथों में तार, एक और दो चार 
सब गन्दा है, पर धंधा है यह|

बदले की मिठास, गुस्से का गिलास, कुँए जैसी प्यास  
सब गन्दा है पर धंधा है यह|

Sunday, January 18, 2009

खुस्रो : माशा-अल्लाह क्या लिखा है

छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाय के,
नैना मिलाय के मोसे सैना मिलाय के|
प्रेम भट्टी का मदवा पिलाय के मतवारी कर दीनी रे,
मोसे नैना मिलाय के|
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बल बल जाऊँ मैं तोरे रंग रजवा,
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"ऐसी रंग दो की रंग नाहीं छूटे,
धोबिया धोले चाहे सारी उमरिया"
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बल बल जाऊँ मैं तोरे रंग रजवा,
अपनी सी रंग दीनी रे मोसे नैना मिलाय के|
------------------------------------------------------------ गोरी गोरी बैय्याँ हरी हरी चूडियाँ,
बैयाँ पकड़ हर लीनी, मोसे नैना मिलाय के|
--------------------------------------------- खुस्रो निज़ाम ,के बल बल जैय्याँ,
मोहे सुहागन कीनी जी मोसे नैना मिलाय के| ----------------------------------------------