फिर उस सजदे का क्या कहना, अनोखी बंदगी होगी|
नसीमें सुबह गुलशन में, गुलों से खेलती होगी,
किसी की आखिरी हिचकी, किसी की दिल्लगी होगी|
दिखा दूंगा सरे महफिल, बता दूंगा सरे महशिल,
वो मेरे दिल में होंगे, और दुनिया देखती होगी|
मज़ा आ जायेगा महशिल में फिर सुनने सुनाने का,
ज़ुबां होगी वहां मेरी, कहानी आपकी होगी|
तुम्हे दानिस्ता महफिल में जो देखा हो तो मुजरिम,
नज़र आखिर नज़र है, बेइरादा उट्ठ गयी होगी|
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