Thursday, September 17, 2009

इस करम का करुँ शुक्र कैसे अदा ?

बे बंदगी उरूज़ किया, बन्दा कर दिया, तारा मेरे नसीब का ताबिंदा कर दिया,
इतनी बड़ी हुज़ूर की बन्दा-नवाजियाँ, मुझको मेरे सवाल ने शर्मिंदा कर दिया!

इस करम का करुँ शुक्र कैसे अदा ?, जो करम मुझ पे, मेरे नबी कर दिया!
मैं सजाता था सरकार की महफिलें, मुझको हर ग़म से रब ने बरी कर दिया|

ग़म-ए-आशिकी से पहले, मुझे कौन जानता था!
मुहबत-ए-मुस्तफ़ा से पहले, मैं कुछ नहीं था, मैं कुछ नहीं था,
करम की इस इन्तहा से पहले, मैं कुछ नहीं था, मैं कुछ नहीं था,
तेरे करम का तस्सदुक, तेरी अदा पे निसार,
मैं क्या था और मुझे क्या बना दिया तूने,
तेरी ज़ात ने बना दी मेरी जिन्दगी फ़साना|
इस करम का करुँ शुक्र कैसे अदा ? जो करम मुझ पे, मेरे नबी कर दिया!
मैं सजाता था सरकार की महफिलें, मुझको हर ग़म से रब ने बरी कर दिया|

अता किया मुझको दर्द-ए-उल्फ़त, कहाँ थी ये पुर खता की किस्मत,
मैं इस करम के कहाँ था काबिल, हुजुर की बन्दा परवरी है,
बन गयी बात, उनका करम हो गया, शाख-ए-नख्ले-तमन्ना हरी हो गयी,
मेरे लब पे मोहम्मद का नाम आ गया, बैठे बैठे मेरी हाज़िरी हो गयी,
खालिक ने मुझको मेरी तलब से सिवा दिया, सल्माया दाया इश्क-ए-मोहम्मद बना दिया,
इस करम का करुँ शुक्र कैसे अदा ?जो करम मुझ पे, मेरे नबी कर दिया!
मैं सजाता था सरकार की महफिलें, मुझको हर ग़म से रब ने बरी कर दिया|

ज़िक्र-ए-सरकार की है बड़ी बरकतें, जब लिया नाम-ए-नबी मैंने दुआ से पहले,
हो गयी मुझ पे अता मेरी खता से पहले, मोहम्मद मुस्तफ़ा का नाम भी क्या इसमें आज़म है,
जहाँ कोई ना काम आये वहां ये काम आता है,
मिल गयी राहतें, अज्मतें, उफरतें,
मैं गुनाहगार था, बेअमल था मगर, मुस्तफ़ा ने मुझे जन्नती कर दिया,
इस करम का करुँ शुक्र कैसे अदा ?जो करम मुझ पे, मेरे नबी कर दिया!
मैं सजाता था सरकार की महफिलें, मुझको हर ग़म से रब ने बरी कर दिया|

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