Wednesday, March 11, 2009

हर एक बात पे कहते हो : मिर्ज़ा ग़ालिब

हर एक बात पे कहते हो तुम, की तू क्या है,
तुम्ही कहो की ये अंदाज-ए-गुफ्तगू क्या है|

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,
जब आँख ही से ना टपका तो फिर लहू क्या है|

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन,
हमारी जेब को अब हाज़त-ए-रफू क्या है|

जला है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है|

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