तुम्ही कहो की ये अंदाज-ए-गुफ्तगू क्या है|
रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,
जब आँख ही से ना टपका तो फिर लहू क्या है|
चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन,
हमारी जेब को अब हाज़त-ए-रफू क्या है|
जला है जिस्म जहाँ, दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है|
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