Sunday, May 3, 2009

कुछ अल्फाज़

मरहूम ख्यालात जब भी मचल उठते हैं,
माहताब-ओ-आफ़ताब का फ़ासला बढ़ाने को जी चाहता है| --रावत

कुछ तो सिला दे मेरी वफ़ा का,
जो तू ज़िन्दगी ना दे सका, मौत ही अदा कर| --रावत

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