Tuesday, September 29, 2009

जबसे तुने मुझे दीवाना बना रखा है

नदी किनारे धुँवा उट्ठे, मैं जानु कुछ होए,
जिस कारन मैं जोगन बनी, कहीं वो ही जलता ना होए|

आप गैरों की बात करते हो, हमने अपने भी आज़माएँ हैं,
लोग काँटों से बच के चलते हैं, हमने फूलों से जख्म खाएं हैं|

तुलसी ऐसी प्रीत ना कर, जैसे पेड़ खजूर,
धूप लगे तो छाँव नहीं, भूख लगे फल दूर,

जबसे तुने मुझे दीवाना बना रखा है,
संग हर शख्स ने हाथों में उट्ठा रखा है|

उसके दिल पे भी कड़ी इश्क में गुज़री होगी,
नाम जिसने भी मोहब्बत का सज़ा रखा है|

काजल डालू किरकिरा सुरमा सहा ना जाए,
जिन नैनन में पी बसे , दूजा कहाँ समाये|

पत्थरों आज मेरे सर पे बरसते क्योँ हो,
मैंने तुमको भी कभी, अपना खुदा रखा है|

दुनिया बड़ी बावरी पत्थर पूजने जाए,
घर की चक्की कोई ना पूजे, जिसका पीसा खाए|

पी जा अय्याम की तलकी को भी हंस कर नासिर,
ग़म को सहने में भी कुदरत मज़ा रखा है|

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