Friday, October 9, 2009

ग़ालिब: दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है!

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है!
आखिर इस दर्द की दवा क्या है!

हम हैं मुश्ताक और वो बेज़ार,
या इलाही ये माज़रा क्या है!

सब्ज़ा-ओ-गुल कहाँ से आये हैं,
अब्र क्या है, हवा क्या है!!! दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है!

जान तुम पे निसार करता हूँ,
मैं नहीं जानता वफ़ा क्या है?

जब की तुझ बिन नहीं कोई मौजूद,
फिर ये हंगामा, ए खुदा क्या है!!!

मैंने माना की कुछ नहीं ग़ालिब
मुफ़्त हाथ आये तो बुरा क्या है!!!! दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है!

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