Thursday, October 16, 2008

"अब अगर और दुआ दोगे तो मर जाऊंगा"

इतना टूटा हूँ के छूने से बिखर जाऊंगा|
अब अगर और दुआ दोगे तो मर जाऊंगा||

पूछ कर मेरा पता वक्त ज़ाया ना करो,
मैं तो बंजारा हूँ क्या जाने किधर जाऊंगा|
अब अगर और दुआ दोगे तो मर जाऊंगा||

हर तरफ़ धुंध है, जुगनू है, ना चराग कोई,
कौन पहेचानेगा बस्ती में, अगर जाऊंगा|
अब अगर और दुआ दोगे तो मर जाऊंगा||

ज़िंदगी में भी मुसाफिर हूँ तेरी कश्ती का|
तू जहाँ मुझ से कहेगी, मैं उतर जाऊंगा|
अब अगर और दुआ दोगे तो मर जाऊंगा||

फूल रहे जायेंगे गुल्दामों में यादों की नज़र,
मैं तो खुशबू हूँ फिज़ाओं में बिखर जाऊंगा|
अब अगर और दुआ दोगे तो मर जाऊंगा||

Wednesday, October 15, 2008

What is Life!!!!

Life is you, me and 20 bucks!
Why 20 bucks! for coffee and cigarettes!
Then "You & Me" do not need anything, the conversation which goes for nights and days discussing everthing. That time "You and Me" are musicians, "You & Me" are scientists, "You & Me" are philosophers, "You & Me" are symbol of true love, "You & Me" biggest enemies in debates, "You & Me" supplementary of each other, "You & Me" complementary of each other, "You & Me" are mathematicians, "You & Me" are speakers, "You & Me" are listeners, "You & Me" make a complete set. and what not!!!!!Its a feeling for which "You & Me" do not have precise words to explain.
The only thing "You and Me" say to each other is:
Life is you, me and 20 bucks! :)

Tuesday, October 7, 2008

Monday, October 6, 2008

Hypocorism: Langde ka Raajyabhishek :-)


Group of IIT-K guys imprisoned in job life (Bangalore-year 2006).

We had just moved from Kanpur to bangalore and staying in one apartment, 
and that time the cook was also not arranged, so we used to go outside everynite
in some restaurant (freq. Lolita's paratha point). Food was soo tasty that the Paratha
point was always crowded with ppl dying to eat. So one of the service men used to stand out side and note down the names for next booking of the tables in advance.

There was the release of bollywood movie "Omkara" in year 2006. and as desi already know 
the characters "Langda Tyagi, Kesu Firangi, Omi Bhaiyya" became very famous. After watching this movie, one fine night, (we were 5 guys) and "just in mood" I booked the restaurant table with name "Tyagi family" :) so when our turn came that restaurant guy called "Tyagi family please come in." everybody in restaurant was smiling, and after that day we all were famous with "Tyagi Family" in Lolita's paratha point, and afterwards we were not supposed to book the table. The restaurant owner used to say "Tyagi Family has turned up, arrange a table for the prestigious family :)" . They all knew we were inspired by "Omkara.". So we thought of doing a formal Raajyabhishek of one of the family members as "Langda Tyagi" by "Omi Bhaiyya (Kathor)."

image shows the scene.


Rawat's music composition

A musical track composed by me.
video shows the "bhasad of 5th year (2006) at IIT Kanpur"

Sunday, October 5, 2008

"No Title"

गर्दिशों में घूमता, मकसद-ऐ-तलाश में,
उट्ठो के आज, अब सुनो, चीखता जो शोर है|

Saturday, October 4, 2008

I appreciate these guys

There is no pain, you are receding.
A distant ships smoke on the horizon.
You are only coming through in waves.
Your lips move but I cant hear what youre sayin.
When I was a child I had a fever.
My hands felt just like two balloons.
Now I got that feeling once again.
I cant explain, you would not understand.
This is not how I am.
I have become comfortably numb.

आ के सज्जादा नशीं

आ के सज्जादा नशीं, केस हुआ मेरे बाद |
ना रही दस्त-ऐ-खाली कोई जाँ मेरे बाद ||

वो हवा का ही चमन हूँ, के चमन में हर सुबह |
पहले मैं जाता था, और बाद-ऐ-सबा मेरे बाद ||

तेज़ रखना सर-ऐ-हर खार को ए दस्त-ऐ-जुनूँ |
शायद आ जाए कोई आबलाप मेरे बाद ||

तहे शमशीर यही साच है मक्कल में मुझे,
देखिये अब किसे लाती है कज़ा मेरे बाद ||

बाद मरने के मेरी कब्र पे आया वो "मीर" |
याद आई मेरे क़ातिल को वफ़ा मेरे बाद ||

Friday, October 3, 2008

"यार की तलाश" by रावत (In sufism yaar is symbolic for that universal supreme creator/power = GOD)

हाल-ऐ-मस्तांगी की वजह,
मस्ताना दिल यार है|
इस दीवानगी की वजह,
वो रहेनुमा परवरदिगार है||
इश्क के मकाँ में, खाना-ऐ-दिल के रूबरू,
खुशनुमा पाक़ अहसास मेरा यार है|
मुसाफिर की आस वो दूर सेहरा में रौशनी की किरन,
टूटे दिल की दरार भी, और तू ही उसका क़रार है|

suffering

राज़-ऐ-माशूक ना रुसवा हो जाए|
वरना मर जाने में कुछ भेद नहीं||

Suffering the pain of love, it would be better to die &
relieve my suffering. I would have no problem dying
except for one thing. If I die, the whole world will know
that I could not bear the hardships of love. It will be a 
disgrace to the beloved to have such a feeble lover &
it would be a disgrace to me for being one. That is why
I continue to live.....; there is no other reason.........

wound

Not a single tear came out of your eye looking at the wound,
which caused the eyelashes of the needle in my chest to get
bloodstained.

नज़्म by रावत

रूखे नैना, खाली दिल, कोरी बतियाँ|
अरमानों की आस को ढूंढें एक अरमाँ||
बेवजह, दिल की उदासी की वो वजह,
जो ना दिल की दवा, ना ही मेरा खुदा|
एक शख्स को खुदा मानकर, की थी जो उम्र भर सदा,
दिल ये तमाशा देख कर हैरां है, की वो ना खुदा था,
पर अब भी वो है, होश वालों का खुदा|
बेखुदी जो दे गया वो क़ातिल,
वजह बन गई मुलाकात-ऐ-सचमुच का खुदा|

ख़ास-बात by रावत

तब से अब तक, तल से नभ तक, बात एक जो ख़ास है| 
बात से गहरा, छिपा हुआ वो, बात में एक अहसास है||  

जहाँ धरा से गगन मिले वो, क्षितिज उसका प्रमाण है| 
वहीं शून्य से छल करता वो, असीम अनंत निर्वाण है|| 
वर्षा की बूंदों से गीली होकर बहती हुई पवन| 
पंछी के कलरव हेतु धुन, और वृक्षों की जो ताल है||

Thursday, October 2, 2008

Lyrics from Bommarillu Song: Appudo Ippudo Yeppudo

अप्पुडो इप्पुडो येप्पुडो कल्लागनान्ने चेली
अक्क्डो इक्क्डो येक्क्डो मनस इच्चाने मरी
कलवो अलवो वलवो ना ऊहल हासिनी
मदिल्लो कलगा मेदिले ना कल्लल सुहासिनी
येवुर एम् अन्कुन्ना ना मनस अन्ते नुवे ने अनी

तीपि कन्ना इंका तीयानैना नेन्ने येदी अंटे वेंटने नी पेरअनी अन्टाने
हाइय कन्ना इंका हाइदैना चोटे एमिटअंटे नुवु वेल्ले दारी अन्टाने
नीलाला आकासम ना नीलम येदन्टे नी वालू कल्लल्लो उनदंनी अन्टाने

नन्नू नेन्ने चाला टिटकुंटा 
नीतो सूटिगा ई माटलएवी चेप्पका पोतुंटे
नन्नू नेन्ने बागा मेच्चुकुंटा
येदो चिन्ना माटे नुवु नातो माटलाडावन्टे
नातोने नेनुंटा नीतोडे नाकुन्टे
येदएदो आइपोतादी नी जत लेकुंटे

नहीं निगाह में मंजिल

नहीं निगाह में मंजिल, तो जुस्तज़ू ही सही| 
नहीं विस्हाल मयस्सर, तो आरज़ू ही सही||  

ना तन में खूं फ़राहम, ना अश्क आंखों में| 
नमाज़-ऐ-शौक़ तो वाजिब है, बेवुज़ू ही सही||  

किसी तरह तो जमे, बज़्म मैकदे वालों, 
नहीं जो बादा-ओ-सागर तो, हा हू ही सही||

गुल हुई जाती है

गुल हुई जाती है, अफ़सुर्दा सुलगती हुई शाम| 
धुल के निकलेगी अभी, चश्म-ऐ-महताब से रात||  

गुल हुई जाती है, अफ़सुर्दा सुलगती हुई शाम|  

और मुश्ताक निगाहों की सुनी जायेगी, 
और उन् हाथों से मस्स होंगे, ये तरसे हुए हाथ||  
उनका आँचल है कि, रुख़सार के पैराहन है, 
कुछ तो है जिससे हुई जाती है चिलमन रंगीं, 
जाने उस ज़ुल्फ़ की मोहूम घनी छांवों में, 
टिमटिमाता है वो आवेज़ा, अभी तक की नहीं||  

गुल हुई जाती है, अफ़सुर्दा सुलगती हुई शाम|  

आज फिर हुस्न-ऐ-दिलारा की वही धज़ होगी, 
वो ही खाबीदा सी आँखें, वो ही काजल की लकीर, 
रंग-ऐ-रुक्सार, हल्का सा वो गाज़े का गुबार, 
संदली हाथ पे धुंधली सी हिना की तहरीर, 
अपने अफ़कार की अशार की दुनिया है यही, 
जाने मजमू है यही, शाहिदे-ऐ-माना है यही, 
अपना मौज़ू-ऐ-सुखन इन् के सिवा और नही, 
तब-ऐ-शायर वतन इनके सिवा, और नही, 
ये खूं की महक है, की लब-ऐ यार की खुशबू, 
किस राह की जानिब से शब आती है देखो, 
गुलशन में बहार आई, की जिंदा हुआ आवाद, 
किस सिंध से नग्मों की सदा आती है देखो||  

गुल हुई जाती है, अफ़सुर्दा सुलगती हुई शाम|

शाम-ऐ-फ़िराक

शाम-ऐ-फ़िराक अब ना पूछ, आई और आ के टल गई|
दिल था के फिर बहल गया, जां थी की फिर संभल गई||
 
बज़्म-ऐ-ख्याल में, तेरे हुस्न की शम्मा जल गई| 
दर्द का चाँद बुझ गया, हिज़्र की रात ढल गई|| 
 
जब तुझे याद कर लिया, सुबह महक महक उट्ठी| 
जब तेरा ग़म जगा लिया, रात मचल मचल गई||
 
दिल से तो हर मुआमला, कर के चले थे साफ़ हम| 
कहने में उनके सामने, बात बदल बदल गई||  

आख़िर-ऐ-शब् के हमसफ़र, फैज़ ना जाने क्या हुए| 
रह गई किस जगह शब, सुबह किधर निकल गई||

dictatroship or democracy !!!!!! by Habib Jalib

मैंने उस्से ये कहा मैंने उस्से ये कहा मैंने उस्से ये कहा मैंने उस्से ये कहा 
ये जो दस करोड़ हैं ,जहल का निचोड़ हैं ,इनकी फिक्र सो गयी ,
हर उम्मीद की किरण ज़ुलमतों में खो गयी , ये ख़बर दुरुस्त है, इन की मौत हो गई
बे शऊर लोग हैं, ज़िन्दगी का रोग हैं , अौर तेरे पास है इनके दर्द की दवा,

तू ख़ुदा का नूर है, अक़्ल है शऊर है, क़ौम तेरे साथ है , 
तेरे ही वजूद से मुल्क़ की निजात है, तू है महर सुबह नौ, तेरे बाद रात है,
बोलते जो चन्द हैं, सब ये शर-पसन्द हैं, इनकी खींच ले ज़बां, इन का घूंट दे गला |

जिन को था ज़बां पे नाज़ , चुप हैं वो ज़बां-दराज़ 
चैन है समाज में, बेमिसाल फ़र्क है कल में अौर आज में
अपने खर्च पर हैं क़ैद लोग तेरे राज में

आदमी है वो बड़ा दर पे जो रहे पड़ा, जो पनाह मांग ले उसकी बक्श दे खता

चीन अपना यार है, उसपे ज़ां निसार है, पर वहां है जो निज़ाम उस तरफ़ ना जाइओ
उस को दूर से सलाम दस करोड़ ये गधे, जिन का नाम है अवाम क्या बनेंगे हुक्मरां 
तू यकीं है ये गुमां, क्या बनेंगे हुक्मरां 
तू तू तू तू तू यकीं है ये गुमां, क्या बनेंगे हुक्मरां,
अपनी तो दुआ है ये, सद्र तू रहे सदा

मैंने उस्से ये कहा मैंने उस्से ये कहा मैंने उस्से ये कहा मैंने उस्से ये कहा

precious words by Faiz Ahmed Faiz (तेरे ग़म को जां की तलाश थी)

तेरे ग़म को जां की तलाश थी, तेरे जां-निसार चले गए|
तेरी राह में करते थे सर तलब, सर-ऐ-रह-ऐ-गुज़ार चले गए||

ये हमीँ थे जिनके लिबास पर, सरे-राह सियाही लिखी गई|
यही दाग़ थे जो सजा के हम, सर-ऐ-बज़्म-ऐ-यार चले गए||

ना सवाल-ऐ-वस्ल, ना अर्ज़-ऐ-ग़म, ना हिदायतें, ना शिकायतें|
तेरे अहद में दिल-ऐ-ज़ार के सभी इख्तियार चले गए||

तेरी तज अदाई से हार कर, शब्-ऐ-इंतजार चली गई|
मेरे ज़ब्त-ऐ-हाल से रूठ के, मेरे ग़म गुसार चले गए||

ना रहा जूनून-ऐ-रुख-ऐ-वफ़ा,ये रसम, ये दार करोगे क्या|
जिन्हें जुल्म-ऐ-इश्क पे नाज़ था, वो गुनाहगार चले गए||