Sunday, January 25, 2009

ख़ुदा से इश्क

इश्क करने में तो वहदत का मज़ा मिलता है,
इश्क सच्चा हो तो बन्दे को ख़ुदा मिलता है|

इश्क करने का मज़ा हमने तो देख लिया,
जिस जगह सजदा किया तुझको वहीँ देख लिया|

इश्क में बू-ऐ-किब्रियाई की,
इश्क जिसने किया खुदाई की|

इश्क शाहों से ना छूटा, ना गदा से छूटा,
हमसे क्या छूटेगा, जब ये ख़ुदा से ना छूटा|

जिसको देखो वो, नज़र आता है दीवाना तेरा|
और वाह क्या अंदाज़ है, ए पीर-ऐ-मयखाना तेरा|

ये भी एक एजाज़ है, ए पीर-ऐ-मयखाना तेरा,
और बज्म में बेपाँव के, चलता है पैमाना तेरा|

दैर में ढूंढा, ना पाया, और ना काबे में मिला,
अरे ठोकरें खिलवा रहा, है कहाँ तू ए ख़ुदा|

दिल भी हाज़िर जां भी हाज़िर, सर भी हाज़िर है तेरे,
और इस से बढ़ कर तू बता दे, क्या है नज़राना तेरा|

तेरे हरजाई पने की हर जगह पे धूम है.
ए सनम, मेरे सनम, ए सनम,
मुश्किल से मुश्किल है पता पाना तेरा|

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