हद-ए-निगाह तक, जहाँ गुःबार ही गुःबार है|
ये किस मकांॅम पे हयात, मुझ को ले के आ गयी,
ना बस ख़ुशी पे है जहाँ, ना ग़म पे इख्तियार है|
तमाम उम्र का हिसाब माँगती है ज़िन्दगी,
ये मेरा दिल कहे तो क्या, की खुद से शर्म सार है|
बुला रहा है कौन मुझको, चिलमनों के उस तरफ,
मेरे लिए भी क्या कोई?, उदास, बेकरार है..............
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