Monday, September 21, 2009

मज़ा आ गया....

मेरे रश्क-ए-कँवर, तूने पहली नज़र जब नज़र से मिलायी, मज़ा आ गया,
बर्क सी गिर गयी, काम ही कर गयी, आग ऐसी लगायी, मज़ा आ गया|

जाम में घोल कर हुस्न की मस्तियाँ, चाँदनी मुस्कुरायी मज़ा आ गया,
चाँद के साए में, ए मेरे साथिया तूने ऐसी पिलाई, मज़ा आ गया|

नशा शीशे में अँगडाई लेने लगा, बज़्म-ए-रिन्दाँ में सागर खनकने लगे,
मैक़दे पे बरसने लगी मस्तियाँ, जब घटा गिर के छाई मज़ा आ गया,

बे-हिज़ाबानां वो सामने आ गए, और जवानी, जवानी से टकरा गयी,
आँख उनकी लड़ी यूँ मेरी आँख से, देख कर ये लड़ाई मज़ा आ गया|

आँख में थी हया, हर मुलाक़ात पर, सुर्ख-आरिज़ हुए वसल की बात पर|
उसने शरमा के मेरे सलावत पे, ऐसे गर्दन झुकाई मज़ा आ गया|

शेख साहिब का ईमान बिक ही गया, देख कर हुस्न-ए-साकी पिघल ही गया,
आज से पहले ये कितने मगरूर थे, लूट गयी पारशाई मज़ा आ गया,

ए फ़ना शुक्र है, आज बाद-ए-फ़ना, उसने रख ली मेरे प्यार की आबरू,
अपने हाथों से उसने मेरी कब्र पर चादर-ए-गुल चढ़ाई मज़ा आ गया|

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