Saturday, October 3, 2009

मुर्शद

अलफ़ अल्लाह चम्बे दी बूटी, मन मुर्शद मेरे लाइ हू
नफ़ी अस्बाद दा मिल्या पानी, हर बूटी हर जाई

अन्दर बूटी मुशक रचाया, जान फ़ुलन ते आई,
जीव्वे मेरा कामल बाहू, जीव्वे बूटी लाइ

ईहे तन मेरा चश्मा होया, मैं मुर्शद वेखें रज्जाँ हू
लू लू विच लख लख चश्मा, इक खोलां इक कज्जाँ हू

इतना दिट्ठ्या, मैनूं सबर ना आवे, मैं होर किस वळ भज्जाँ हू

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