Sunday, January 11, 2009

कोई अटका हुआ है पल शायद

कोई अटका हुआ है पल शायद,
वक्त में पड़ गया है बल शायद||

आ रही है जो चाप क़दमों की,
खिल रहे हैं कहीं कवँल शायद||

दिल अगर है तो दर्द भी होगा,
इसका कोई नहीं है हल शायद||

राख को भी कुरेद कर देखो,
अब भी जलता हो कोई पल शायद||

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