Thursday, October 2, 2008

dictatroship or democracy !!!!!! by Habib Jalib

मैंने उस्से ये कहा मैंने उस्से ये कहा मैंने उस्से ये कहा मैंने उस्से ये कहा 
ये जो दस करोड़ हैं ,जहल का निचोड़ हैं ,इनकी फिक्र सो गयी ,
हर उम्मीद की किरण ज़ुलमतों में खो गयी , ये ख़बर दुरुस्त है, इन की मौत हो गई
बे शऊर लोग हैं, ज़िन्दगी का रोग हैं , अौर तेरे पास है इनके दर्द की दवा,

तू ख़ुदा का नूर है, अक़्ल है शऊर है, क़ौम तेरे साथ है , 
तेरे ही वजूद से मुल्क़ की निजात है, तू है महर सुबह नौ, तेरे बाद रात है,
बोलते जो चन्द हैं, सब ये शर-पसन्द हैं, इनकी खींच ले ज़बां, इन का घूंट दे गला |

जिन को था ज़बां पे नाज़ , चुप हैं वो ज़बां-दराज़ 
चैन है समाज में, बेमिसाल फ़र्क है कल में अौर आज में
अपने खर्च पर हैं क़ैद लोग तेरे राज में

आदमी है वो बड़ा दर पे जो रहे पड़ा, जो पनाह मांग ले उसकी बक्श दे खता

चीन अपना यार है, उसपे ज़ां निसार है, पर वहां है जो निज़ाम उस तरफ़ ना जाइओ
उस को दूर से सलाम दस करोड़ ये गधे, जिन का नाम है अवाम क्या बनेंगे हुक्मरां 
तू यकीं है ये गुमां, क्या बनेंगे हुक्मरां 
तू तू तू तू तू यकीं है ये गुमां, क्या बनेंगे हुक्मरां,
अपनी तो दुआ है ये, सद्र तू रहे सदा

मैंने उस्से ये कहा मैंने उस्से ये कहा मैंने उस्से ये कहा मैंने उस्से ये कहा

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