घेर ले मुझे सब आँखें, मैं तमाशा तो नहीं|
जिन्दगी तुझसे हर इक सांस पे समझौता करुँ,
शौक जीने का है मुझको, मगर इतना तो नहीं|
रूह को दर्द मिला, दर्द को आँखें ना मिली,
तुझको महसूस किया है, तुझे देखा तो नहीं|
सोचते सोचते दिल डूबने लगता है मेरा,
ज़हन की तह में मुज्ज़फ्फर कोई दरिया तो नहीं?
No comments:
Post a Comment